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सफर - मौत से मौत तक….(ep-30)

आज नंदू घर पर बेसब्री से इंतजार कर रहा था अपने बेटे और बहू का, जो शादी के दो दिन बाद टूर पर निकले थे, और आज पंद्रह दिन की छुट्टी बनाकर आने वाले थे।

घर के सामने गाड़ी रुकी और दोनो बाहर आये, नंदू तब छत में था, जो छत से दोनो को देख रहा था,
  समीर और इशानी गाड़ी से उतरे और एक एक करके दस से बारह शॉपिंग बैग बाहर निकाले और पुष्पाकली को आवाज देने लगे। पुष्पाकली तो सारा काम करके जा चुकी थी। नंदू छत में से नीचे उतर आया और बाहर गाड़ी के पास गया।

"अरे आ गए आप लोग…."नंदू उनके तरफ़ बढते हुए बोला।

"पुष्पाकली कहाँ है पापा, ये सामान था इतना सारा…." समीर ने कहा।

नंदू उनके पास ही पहुँचा तो समीर ने पापा के पैर छुए , लेकिन इशानी ने दूर से ही नमस्कार कह दिया।

"इशानी पैर छुओ पापा के" समीर बोला।

इशानी समीर के कहने पर आगे आकर नंदू के पैर की तरफ झुकी, पूरी तरह से पैर तक उसका हाथ भी नही पहुंचा….

"खुश रहो बेटा" नंदू ने आशीर्वाद दिया।

"पुष्पाकली तो चले गयी है, लाओ थोड़ा थोड़ा करके हम ही ले चलते है, कौन सा इतने ज्यादा है वो" नंदू बोला।

नंदू ने दो बैग उठाये और दो बैग समीर ने उठाये, साथ मे अपना पर्स उठाये इशानी भी अंदर की तरफ चल पड़ी।
अंदर पहुंचते ही फुदकते हुए सोफे में जा गिरी
"आह….थक गए….अब तो चार पांच दिन लगातार सोकर ही ये थकान मिटेगी…." इशानी ने कहा।

नंदू और समीर ने बैग अंदर रखा
नंदू ने समीर से कहा- "तुम भी थक गए होंगे, जाओ आराम करो, ये सामान में ले आता हूँ।"

समीर भी सोफे पर बैठते हुए पानी पीने लगा, और नंदू दोबारा बाहर की तरफ चले गया ,

"समीर…. घर मे कोई नौकर भी नही रखे है तुमने, अब चाय क्या शाम वो पुष्पा आकर बनाएगी, या तुम बनाकर लाओगे" इशानी बोली।

"चाय और खाने पीने की टेंशन मत लो, अभी पापा को बोलूँगा, मुझे तो किसी भी ढाबे से उनकी हाथ की चाय अच्छी लगती है, समीर बोला।

"वाह मेरे लाल वाह! हर बाप का सपना होता है कि एक सुंदर सी बहु घर पर आएगी, और प्यार से एक बेटी की तरह चाय बनाकर आवाज देगी की पापाजी आ जाओ चाय पी लो….और तू बहु को क्या सीखा रहा है कि अभी पापा आएंगे चाय बनाएंगे, खाना भी बनाने की टेंशन मत लेना….अगर इसकी जगह तूने कहा होता कि जाओ प्यार से दो कप चाय बना लाओ, पापा भी पियेंगे तो उनसे पूछ लो, तो आज से कहानी ही अलग होती, मैं सोचता ही था कि हमारा घर उजड़ क्यो रहा था, कारण तो तू खुद है" नंदू अंकल ने कहा जो कि सोफे में उनके साथ बैठे थे।

नंदू इस बार तीन बैग लेकर आया था, और उनको भी बाकी बैगों के साथ रखकर वापस बैग लेने चले गया।
दो चक्कर और लगाने के बाद नंदू ने सारे बैग अंदर रख दिये। नंदू सोच में था कि दो बैग साथ लेकर गये थे और आये ढेर सारे बैग लेकर, आखिर क्या होगा इनमें।

समीर ने पापा से बहुत विनम्रता से कहा- "पापा पंद्रह दी तक आपके हाथ की चाय नसीब नही हुई, आज तो दिन की शुरुआत आपके हाथ की चाय से करेंगे।"

उसकी बात सुनकर नंदू मुस्करा उठा। उसके चेहरे पर जो मुस्कान बिखरी थी उसका कारण ये था कि समीर विदेश जाकर बड़े बड़े होटलों में रहकर भी मेरे हाथ की चाय को मिस कर रहा था।
"अभी बनाकर लाया, तब तक आप लोग सोच लो नाश्ता क्या करोगे, चाय के बाद नाश्ता भी करोगे ना" मुस्कराते हुए नंदू बोला।

"ज्यादा खुश मत हो , ये तेरी तारीफ नही, तुझे मस्का लगा रहा था" नंदू अंकल खुद की मुस्कराहट से चिढ़ते हुए बोले।

नंदू अंदर गया और चाय बनाने लगा, दो कप चाय और एक ग्रीन टी बनानी थी।

उधर बाहर इशानी बैग्स को दो ग्रुप में बांट रही थी, और नंदू अंकल उसकी हरकतों को चुपचाप देख रहे थे।

"मेरे लिए ये लाना, मेरे लिए वो लाना…  मतलब घूमने भी गए तो लोगो ने दस दस आयटम मंगा दी, छः टॉप तो प्रियंका के ही है, इन जैसे दोस्तो के होने से तो ना होना अच्छा है" परेशान सी इशानी बोली,
इतने सारे बैग्स में चार बैग उनके अपने थे, बाकी दो तीन इशानी के सहेलियों के मंगाए सामान से भरे पड़े थे। और दो तीन इशानी अपने मम्मी पापा के लिए कपड़े खरीद के भर लायी थी, हालांकि सारे पैसे समीर के नही खर्च किये, थोड़े बहुत खुद भी खर्च किये जो  उसे उसके पापा ने दिए थे।

"तुम्ही जगह जगह से उनको विडीयोकॉल कर रही थी….अपने लिए लेने के बाद तुरन्त फ़ोटो अपने फ्रेंड्स ग्रुप में डालकर पूछोगे की कैसा लग रहा है।तो फरमाइश तो करेंगी ना वो भी।" समीर बोला।

ग्रुप का पूछो मत, अब तक मैसेज आ रहे है, कुलदीप की बहन सारिका जो कभी ग्रुप में नजर नही आती थी आज वो भी मेसेज करके कहती है :-  "अभी वही है तो एक मेरी बहन के लिए भी ले लेना ऐसा ही टॉप…."

"अब तो मैं घर आ गयी हूँ.." लिखकर ग्रुप में सेंड करते हुए इशानी ने अपना मोबाइल का नेट ऑफ किया और चार्ज पर लगा दिया।

"लडकिया सबके बारे में कितना सोचती है ना….अब इशानी को ही ले लो,अपनी मम्मी के लिए और पापा के लिए ढेर सारे कपड़े ले आयी, क्योकि जिंदगी में बार बार घूमने जाने का मौका नही मिलता। कुछ स्पेशल मेकप का सामान और कुछ दिखलावटी श्रृंगार भी ले आयी थी। और एक तरफ समीर था की एक रुमाल तक नही लाया होगा नंदू के लिए" नंदू अंकल ने सोचा

"चाय बनाने में इतना टाइम….उफ्फ…." इशानी ने कहा।

"लाते ही होंगे" समीर बोला।

"व्हाट्सप पर स्टेटस अपडेट करने की तरह बटन दबाते ही नही बन जाती चाय, और ना ही होटल में आर्डर करते ही बासी चाय गर्म करना है, चाय बनने में पांच मिनट तो लगेंगे ही, जब खुद कभी बनाई होती तब पता चलता" नंदू अंकल इशानी कि तरफ देखते हुए बोले।

तभी आवाज लगाते हुए नंदू आया जो बहुत खुश था, - "चाय हाजिर है"

नंदू आकर चाय टेबल में रखकर ग्रीन टी समीर कि तरफ़ बढ़ाकर खुद एक चाय की कप उठाकर बैठ गया।
नंदू ने सिर्फ ग्रीन टी को चाय से अलग करते हुए समीर को पकड़ाई थी,  और प्लेट इशानी के ठीक सामने था और खुद अपनी चाय की कप लेकर थोड़ा पीछे लगे सोफे में बैठ गया।

ये बात इशानी को बुरी लगी कि अपने बेटे को कप हाथ मे, और मुझे कहा भी नही की चाय पी लो, अपनी चाय ले ली बूढ़े ने, जरूर हमारी शादी में इनकी मर्जी नही शामिल इसलिये मेरे साथ सौतेला जैसा बर्ताव कर रहे है ये।

इशानी ने चाय उठा तो ली लेकिन अपने मन मे ये बात बिठा भी ली थी।


*****


धीरे धीरे वक्त पिघलता गया। बहु के रूप में एक बेटी का प्यार पाना, एक बेटी का घर को महकाना, और एक आफिस में सारा दिन झोंक देने वाले लड़के का ध्यान घर गृहस्थी की तरफ भी खींचकर लाना, ऐसे बहुत सारे ख्वाब नंदू ने देखे थे, हाँ शुरुआत में जैसे बैचेनी नंदू रिक्शेवाले को हैं को घर जल्दी पहुंचने की होती थी और गौरी से मिलने की उससे बात करने की होती थी, कुछ कुछ बैचेनी समीर को भी थी, लेकिन जमाने का फर्क था,

नंदू और गौरी का वक्त था इंतजार का, नंदू सुबह स्टेशन जाने के बाद वापस घर आने को तड़पता था, जल्दी घर आ जाता था। और घर आकर काम कर रही गौरी के साथ काम करके उसका हाथ बटाता था। और दोनो काम करते करते बात कर लेते थे। गौरी आटा गुंदती तो नंदू शब्जी छिलकर काट देता था। काम भी हो जाता था, दोनो एक दूसरे के साथ बात भी कर लेते थे। एक दूसरे की आवाज सुनने में ही शुकुन था, कोई दिल की बात थोड़ी होती थी, बस घर मे क्या सामान है, क्या नही है, कल सुबह किसकी सब्जी बनानी है, कल दिन में लंच क्या ले जाओगे….कुछ इस तरह की बाते होती थी। और इन सब बातों में भी खुश रहते थे।

लेकिन अब जमाना बदल चुका था।
सुबह से शाम हो जाती, इशानी फोन में बात करती रहती थी।  जो बात करने के लिए नंदू शाम के वक्त दूर तक जाने वाले सवारियों को छोड़कर अपने घर की तरफ जाने वाली सवारियों को वरीयता देता था, वो बाते तो अब होती ही नही थी। इशानी शाम को क्या पकाना है, सुबह क्या पकाना है ऐसा कभी नही सोचती थी, ना ऐसी कोई बात होती थी। लेकिन फिर भी दिन में दस दफा समीर से फोन करती थी।  और उठने के लिए तो समीर की भी अम्मा निकली….समीर उठकर नौ बजे सिरहाने के पास रखे ग्रीन टी को पी तो लेता था, लेकिन इशानी ने साफ बोल रखा था पुष्पा को, की उसे चाय दस बजे से पहले मत देना। सुबह बिस्तर पर लेटे लेटे समीर को आफिस के लिए बाय बोलती थी, और फिर उठकर  अंगड़ाइयां लेते हुए चाय के लिए पुष्पा को कहती थी।  चाय पीकर नहाना धोना और साढ़े ग्यारह बजे तक नाश्ता करना उसकी सुबह की एक आदतों में शामिल था।
वैसे भी अब पुष्पा को परमानेंटली अपने घर मे रख लिया था। बस दिन में थोड़ी देर घर जाती, और रात को सब काम करके चली जाती थी। तीन चार कोठियों का चक्कर खत्म करवा दिया था, ये पुष्पा के लिए अच्छी बात थी।

नंदू ने बहुत बार टोका भी, रात को जल्दी सोकर सुबह जल्दी उठने की आदत डाल लो, सुबह आलस करना बीमारी को जन्म देता है , लेकिन उसकी बात का इशानी पर कोई असर नही, और भी उल्टा समीर से कहती- "आपके पापा को नींद तो आती नही, हमारी नींद में भी नजर लगा रहे, अब उन्हें पांच बजे हम तो उठो कहते नही, " इशानी बोली।

"कोई बात नही, वो पुराने जमाने के लोग है, और तुम जानती ही हो….उन्हें आदत है बचपन से जल्दी उठने की, मुझे भी उठा देते थे , होस्टल आकर पीछा छूटा, सुबह जल्दी  उठाने वाले पापा से" समीर ने कहा।

"मैं उन्हें कुछ नही कहती, दिन भर कुछ ना कुछ बोलते रहते है, पता नही कहां कहां से बाते उठाकर लाते है"  इशानी ने कहा।

समीर हंसते हुए बोला- "तो क्या हुआ, बोर नही होने देते तुम्हे घर पर, बात करने वाला तो चाहिए ही ना….अब तुम भी अकेली हो और वो भी अकेले है, एक दूसरे से बात नही करोगे तो दोनो बोर हो जाओगे"

"उनकी बातों से तो और भी ज्यादा बोर हो जाती हूँ मैं….एक कान से सुनकर दुसरे कान से निकाल लेती हूँ" इशानी मुंह बनाते हुए बोली।

"तो फिर प्रॉब्लम क्या है….अपने काम की बात सुन लिया करो, जो काम की नही उन्हें भूल जाओ" समीर बोला।

" यार! मुझे कहते है तुझे खाना पकाना सीखा दूँगा, कोई मुश्किल काम नही है……अब बताओ घर मे नौकरानी क्या चूहे पकड़ने के लिए रखी है, और मैंने अपने घर का किचन कभी ढंग से नही देखा था,और आज दिन में पूरा एक घंटा उनके चक्कर में किचन में खड़ा रहना पड़ा" इशानी शाम को सोने से पहले दिन भर की शिकायत लगा रही थी, और समीर हर बात पर मुस्करा रहा था।

"ऐसे हँस क्यो रहे हो, तुम तो आफिस गए और शाम को आये, दिन भर तो में रहती हूँ घर पर" इशानी बोली।

"यार, ये जो प्रॉब्लम तुम गिना रही हो, ये प्रॉब्लम है ही नही, दिन भर घर रहकर थोड़ा चल फिरु लोगी, थोड़ा काम सिख लोगी तो क्या खराबी है, सीखा हुआ काम बेकार थोड़ी ना जाता है" समीर बोला।

"बातो में तो आपने बाप पर गए हो तुम, वो भी यही कहते है कि सीखा हुआ काम बेकार नही जाएगा, इतना ही शौक था सीखने का, तो तुम्हे आता है खाना पकाना? बताओ?"  इशानी ने सवाल किया।

समीर ने हंसकर कहा- "हां….मैगी बनाना आता है, और अपनी ग्रीन टी भी बना लेता हूँ"

"गर्म पानी मे पैकेट फाड़कर डालना, या टी बैग डुबाकर शुगर डालकर हिलाने को खाना पकाना नही कहते, बस पानी गर्म करना आता है तुम्हे" इशानी बोली।

"वो सब छोड़ो, तुम क्यो इतना गर्म हो रही हो….पता है पापा जब बारह साल के थे, तब से खाना पकाना आता है उनको, क्योकि उन्होंने सीखा था, सीखने की कोशिश की थी" समीर बोल रहा था कि समीर को टोकते हुए बीच मे इशानी बोल पड़ी..- "गुड नाइट….अपना ज्ञान अपने पास रखो"  और समीर से थोड़ा दूर होकर उसकी तरफ पीठ पलटाकर सो गयी।

समीर ने उसे अपनी तरफ खींचते हुए कहा- "नाराज हो गयी मेरी जान……अरे इतना सीरियसली मत लिया करो पापा को….जो बात तुम्हे अच्छी लगे उसे ही लेना सीरियस, खुश रहने का मूलमंत्र यही है जो बात पसंद नही या दुख पहुंचाए उसे भूल जाओ"

खुद को समीर के हाथ से छुड़ाते हुए इशानी ने कहा- "नही रहना खुश मुझे,  मुझे पता है तुम अपने पापा का ही साथ दोगे, सोने दो मुझे प्लीज…."

"सॉरी बाबा……सॉरी! तुम बताओ मैं क्या करूँ……अपने खुश रहने का राज बताओ….मैं हर वो मुमकिन खुशी तुम्हारे कदमो में रख दूँगा।" समीर इशानी को मनाते हुए बोला।

"बस बस ….ज्यादा मख्खन मत लगाओ….मैं कुछ नही चाहती, बस हर काम के पीछे मुझे टोकना मत बोल देना उनको….मैं बोलूंगी तो फिर वही पुराने जमाने की बात लेकर बैठ जाएंगे, एक बहु- बेटी के कर्तव्य का बखान करने लगेंगे…." इशानी ने कहा।

"ठीक है, मैं सुबह बात करूँगा एक बार" समीर ने कहा।

कहानी जारी है


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4 Comments

Niraj Pandey

07-Oct-2021 02:09 PM

वाह बहुत बेहतरीन

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Seema Priyadarshini sahay

29-Sep-2021 05:00 PM

बहुत सुंदर लिखा आपने

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Aliya khan

29-Sep-2021 12:23 AM

Nice

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